छठ पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाई जाती है। यह चार दिवसीय महापर्व है जो चौथ से सप्तमी तक मनाया जाता है। यह दिन भगवान सूर्य को समर्पित है। बिहार और पूर्वांचल के निवासी इस दिन जहां भी होते हैं सूर्य भगवान की पूजा करना और उन्हें अर्घ्य देना नहीं भूलते।
पुराणों के मुताबिक छठ पूजा की कहानी ये है की सूर्य की उपासना से हुई राजा प्रियवंद दंपति को संतान प्राप्ति : बहुत समय पहले की बात है राजा प्रियवंद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के निर्देश पर इस दंपति ने यज्ञ किया जिसके चलते उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्य से यह उनका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. इस घटना से विचलित राजा-रानी प्राण छोड़ने के लिए आतुर होने लगे।तभी एक ज्योतियुक्त विमान पृथ्वी की ओर आता दिखा। नजदीक आने पर सभी ने देखा कि उस विमान में एक दिव्याकृति नारी बैठी है। देवी ने प्रियव्रत से कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूं। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को संतान प्रदान करती हूं। उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी। राजा प्रियंवद और रानी मालती ने देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। और तभी से छठ पूजा होती है। एक कथा ये है की अयोध्या लौटने पर भगवान राम ने किया था राजसूर्य यज्ञ छठ से जुड़ी एक कहानी भगवान राम व माता सीता से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। भगवान राम ने यज्ञ के लिए ऋषि मुग्दल को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया। इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। तब माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सूर्य पुत्र कर्ण की कथा राजा कर्ण के विषय में कथा है की कर्ण अपना आराध्य सूर्य देव को मानता था। यह नियम पूर्वक कमर तक पानी में जाकर सूर्य देव की आराधना करता था और उस समय जरुरतमंदों को दान भी देता था। माना जाता है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी और सप्तमी के दिन कर्ण सूर्य देव की विशेष पूजा किया करता था। अपने राजा की सूर्य भक्ति से प्रभावित होकर अंग देश के निवासी सूर्य देव की पूजा करने लगे। धीरे-धीरे सूर्य पूजा का विस्तार पूरे बिहार और पूर्वांचल क्षेत्र तक हो गया।
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चलिए आप सभी को माँ महथिन के दरबार में लेकर चलते
है । और उनकी पूरी कहानी आप सभी को सुनाते । सच में आपको बहुत ही आनंद आएगा। और ऐसा भी लगेगा की ये अभी की ताज़ा घटना है। महथिन माई मंदिर भोजपुर जिला मुख्यालय से पश्चिम दिशा में करीब २० किलोमीटर दूरी पर बिहीया में स्थित है. यहाँ सती शिरोमणि महथिन माई का मंदिर है. लोगो का कहना है कि यह मंदिर अत्याचार,अनाचार और कुकर्म पर सदाचार के विजय का प्रतिक है. माना जाता है कि उस इलाके का राजा दुराचारी था, वह उधर से गुजरने वाली नई- नवेली दुल्हनो की डोली पहले अपने पास मंगवा लेता था, जब सिकरिया गांव के श्रीधर महंथ की बेटी की डोली उस रस्ते से सोंन नदी के पास तुलसी हरीग्राम की ओर जा रही थी तो राजा के सैनिको ने डोली रोक ली और महल की ओर चलने को कहा, जिसका महथिन ने विरोध किया. जब सैनिको ने जबरदस्ती की तो महथिन ने क्रोधित हो कर राजवंश के नाश होने का शाप दे दिया. बताया जाता है की इस घटना के बाद महथिन की डोली में स्वतः आग लग गई और वह सती हो गई और घटना के बाद हरिहोवंश का नाश हा गया . और एक बात yaha पर जो कोई भी bhakt सचे man se mahthin ma se mangta hai maa उसे जरुर पूरा करती hai . अच्छा लगे तो एक like और एक share जरुर कीजियेगा। सारे लोगो तक पहुचेगी ये कहानी .. धन्यवाद। |